Saturday, January 25, 2020














राजा के हाथ में छुपी हुई तलवार थी
और प्रजा के हाथ में
एक पुरानी ढाल ।

उसने तमाम वादों के साथ
एक दिन मांग ली
प्रजा से उसकी ढाल ।
मासूम जनता ने
पकड़ा भी दी उसके हाथो में
बरसों से जंग खाई हुई
लेकिन मजबूत ढाल ।

राजा
ढाल को अपने हाथो में देखकर
रो पड़ा
जनता द्रवित भी हुई
देखकर ये हाल ।

राजा ने छुपी हुई
तलवार निकाली
और
काटने की कोशिश में लग गया
लोहे की तलवार से लोहे की ढाल ।

 चिंगारी निकलना तय था
लेकिन
आह ये क्या
ये तो बन गयी एक आग
जल गया राजा , जल गई प्रजा
टूट गई राजा की तलवार

 रह गई बस
वैसी की वैसी
पुरानी जंग खाई हुई ......ढाल ।

Thursday, September 13, 2012

कोकराझार


जब मै

छोटा बच्चा था

किरायेदार अब्दुल के बेटे

आति‌फ के साथ ताश के पत्तों का

मकान बनाया करता था ।



और हम दोनो ही उसके

बिखर कर न गिरने की

प्राथेना करते थे

वो अपने अल्लाह से

और मै अपने राम से ।



पत्तों के मकाँ का गिरना तो

समय के साथ तय था

फिर भी हम दोनो में ही

अजीब सी प्रतिस्पर्धा हो जाती

कि किसके भगवान ने

किसकी प्रार्थना ज्यादा देर तक सुनी !



हम लड़ पडते अपने आप को

श्रेष्ठ साबित करने के लिए

और फिर कभी घंटो

कभी दिनों

और कभी महीनों बात नहीं करते ।



ताश के पत्ते पड़े रहते

वहीं

उसी खाली पड़ी मेज पर

पर न मै

और ना ही वो कभी कोशिश करते

अकेले मकान बनाने की ।



फिर कुछ दिनों बाद

या तो ईद आ जाती या होली

और साथ में आ जाती

या तो उसकी सिवईयाँ

या मेरी गुजिया

और फिर हम भूल जाते

पुरानी राम या अल्लाह की लड़ाई

और हंसते खेलते

जुट जाते

ताश के मकान बनाने में ।



अब बड़े होने पर

कोकराझार से

अब्दुल की खबरें

आती है ..

सुना कि फिर दंगे हुए

और मै अकेला

कटोरी में लिए

ईद की सिवईंया

और होली की गुजिया

आज भी इंतजार करता हूँ

किरायेदार अब्दुल के बेटे

आतिफ का ॥

Thursday, January 26, 2012

नन्ही हथेलियाँ

भीड़

दोस्तो ! अजीब सी भीड़

लोग ही लोग...

संकरी सी गलियों में

सिर तक भरे हुए लोग ..


कुछ पान की दुकान पर

तो कुछ चर्चगेट प्लेटफार्म पर

कुछ ....ठीक धारावी वाले मोड़ पर

अनायास से चलते जा रहे...


कुछ बस सेल्टर के बाहर

बारिश की बूंदो में

टकटकी लगाकर भविष्य देखते

तो कुछ मौन में ही गुम ..

अपने बीते हुए कल को याद करते ..


कुछ ऐसी भीड़ भी है

जो रोज खोजती खुद को

अखबारों के पन्नों में

लकी ड्रा के विज्ञापनों में


तो कुछ लोग छोटे से

कागज पर ..

रोज करते बड़ी बड़ी गुणा-भाग

बच्ची की शादी की

बेटे की पढाई की

या माँ की दवाई की

तो कुछ

शब्दश: करते प्रार्थना

अंजाने से भगवान की ....


लेकिन फिर भी आजाद है यह

आम भीड़ !!


दोस्तों

इसी भीड़ में नन्ही हथेलियां है

कुछ कोमल से फूल बेचती नन्ही हथेलियाँ

कुछ कटोरा लिए हथेलियाँ

कुछ जूते पालिस करती नन्ही हथेलियाँ

कुछ मासूमियत से

ढाबे की झूठन मांजती हथेलियां

कुछ पतंग उड़ाने की उम्र में

पतंग बनाती नन्ही हथेलियां

कुछ रोज “एजुकेट इंडिया” के विज्ञापन

बांटती अनपढ मासूम हथेलिंया ....


कुछ का भविष्य प्लास्टिक की बोतलों में

कुछ का रद्दी चुनने में

कुछ का चंद चौराहों के ठेलों पर

कुछ का लगातार चलती जा रही सिलाई मशीन पर

कुछ का चमकते जूतों पर

कुछ का घरों की दीवारों पर

और इन्ही में कुछ लगातार

इंतजार करती हैं राष्ट्रीय पर्वों का

जब प्लास्टिक के तिंरगो की

कीमत मिलती है

और इन हथेलियों की जिंदगी

चलती हैं


“आजादी” शब्द का अर्थ

अनकहा-अनसुनी सी हो जाती हैं

जब भीड़ के हिस्से में

ऐसी नन्ही हथेलियाँ मिल जाती हैं ॥



Sunday, November 06, 2011

गीले फूल ...सूखी पंखुड़ी
















आज तुम्हारे दिये हुए
गुलाब के फूल
कुछ रोज्‌ के बाद..
जब किताबों से निकाले
तो फिर से गीले तो हुए
पर खिल न सके !!

एक पंखुड़ी...
जिसको
मैंने बेबस सा समझा था
और जिसने आपको
बाकी बचे
फूल से जुदा कर लिया ....
अकेली सूख गयी .....
और आजा‌द हो उड़ गई
तुम्हारे नाम के चंगुल से !!

अक्सर यूंही
कई पंखुड़ियों को होता है
अपने सूखने का इन्तजार ....!!

Saturday, April 16, 2011

मोहे कांकर पाथर कर दीजो

मोहे कांकर पाथर कर दीजो.....
तू पंछी मत बनईयो
मोहे गहरा सागर कर दीनो
तू लहरे मत दिखईयो ...

मोहे सूरज आग बना दीजो
तू चंदा मत बनईयो
मोहे सूखी रोटी जलने दीजो
तू माखन मत चुपरैयो ॥

मोहे भटकन देना दर दर पर..
कोई पाहन मत ठहरईयो
भ्रमर !! तिस्कार दियो तू नैनन से
मोहे प्रेम रंग न छलियो॥

Sunday, August 15, 2010

स्वतंत्रता दिवस पर .........

माटी म्हारे देश की
मोहे खूब ही भावे
पानी-रोटी ,सत्तू
खुशबू पास बुलावे


अमरूदों का भीग़ा ठेला
पान-पुरी की चाट
पंजाबी ढावों के बाहर
पड़ी हुई कुछ खाट


बूढी दादी,नानी,अम्मा
करें जवानी याद
नये खिलौनों से खेल-खेल कर
दादा करते बात


और गली की उधम चौकड़ी
गरम समोसों की शाम
“फुरसतगंज” के चौराहों पर
उड़े पतंगे ले आस

और वहीं उसी किनारे
ले हाथों मे हाथ
सजकर बैठे गुड्डा-ग़ुडिया
कर तिरसठ को पार ॥

Wednesday, August 04, 2010

इति श्री चमचा कथा !!

बहुत दिनों के बात सोचा कि फिर से कुछ बकबास लिखा जाये। मेरे पढने वालो का मै शुक्रिया अदा करना चाहता हूँ कि कि वो मेरी बकबास समय निकाल कर पढ लेते हैं और कुछ ऐसे भी है जो इस बकबास पर टिप्पढी भी कर देते हैं । ऐसे सभी बेरोजगारों को मेरा दंडवत साष्टांग प्रणाम ।


चलिए ज्यादा वक्त न गुजारते हुए मै विषय पर आता हूँ । मैंने कुछ समय पहले घर में बनने वाले व्यंजनों में प्रयुक्त होने वाले सभी बर्तनों में से सबसे महत्वपूर्ण बर्तन को पुरस्कृत करने का विचार किया । सोचा था कि शायद इस तरह से मै उन पुराने पड़े बर्तनो में कुछ सकारात्मक उर्जा का संवहन कर पाऊंगा ।

यह एक कठिन कार्य था । कुकर ,कड़ाही , और तवा (जिस पर रोटी सेकी जाती है) सर्वाधिक कर्मठ थे । मुझे पता था कि यही वह लोग है जो प्रतिदिन अग्नि के प्रहार सक कर व्यंजनों का रसास्वादन कराते है । लेकिन कुकर की त्वचा के रंग और मुश्किले आ जाने या अधिक Pressure बढ जाने पर चिल्ला देना मुझे बिल्कुल पसंद नही आया। इस प्रकार वह पहले ही दौर में बाहर हो गया ।

“तवा” से मेरा कोई हार्दिक लगाव नहीं था । कारण ....उसमें मैंने Diversification बहुत कम देखा , वही गोल रोटी ,या बहुत ज्यादा कुछ अछ्छा करेगा ....तो पंराठे । यह किसी भी प्रकार से सर्वोत्तम के लायक तो नही ही था ।


अंतत: कड़ाही ....मै जानता था कि यही मेरे इनाम की हकदार है और शायद मै उसको पुरस्कृत कर भी देता ....यदि ठीक अतिंम स्थिति में पास रखा “चमचा” मुझे ध्यान नही दिलाता । कढ़ाही अल्मुनियम या लोहे की बनी होती है और यह कार्य सम्पादन के बाद सर्वाधिक समय तक गरम बनी रहती है यदि इसको या इसमें पड़े व्यंजनो को बिना “चमचों” की सहायता से उतारा गया तो यह आपको आघात पहुंचा सकती है । अधिकांश कर्मशीलों की यही दिक्कत है ।


अंतत: मेरा ध्यान चमचे पर गया । अहा ....धन्य !! वही वैसा ही चमचमाता हुआ,अति सुंदर । कितनी सौम्यता से कड़ाही और कुकर में जाता है और सबसे बेहतरीन पका पकाया पकवान उपलब्ध करा देता है।परिवार के अन्य सद्स्य जैसे चम्मच भी पूरी तत्परता से मालिक की सेवा करती है ।मै थाली के एक दम पास अपनी आखों के सामने सदैव चमचा रखता हूँ । यही सर्वोत्तम पाने का सबसे हकदार है । दुनिया के सारे चमचों को मेरा सत सत प्रणाम ।


वैधानिक चेतानवी :

1-मुझे (शायद आपको भी ) भारतीय व्यंजनो में छौंक लगा व्यंजन अति-प्रिय है , मेरे विचार में इस अतिरिक्त स्वाद का कारण यह भी हो सकता है कि यहां इस विधि का प्रयोग करने वाला, “चमचों” को भी अग्नि में तपाता है ।

2-किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति से इस पूरे लेख का कोई सम्बन्ध प्रतीत हो तो मात्र संयोग ना समझे ......अगर हो सके तो क्षमा प्रदान कर दें ।